परवाना और जुगनू

परवाना और जुगनू 
परवाना
परवाने की मंज़िल से बहुत दूर है जुगनू
क्यों आतिशे-बेसूद से मग़रूर है जुगनू
जुगनू
अल्लाह का सो शुक्र कि परवाना नहीं मैं
दरयूज़ागरे-आतिशे-बेगाना नहीं मैं
 मेरा गुनाह मुआफ़
मैं भी हाज़िर था वहाँ ज़ब्ते-सुख़न कर न सका
हक़ से जब हज़रते- मुल्ला को मिले हुक़्मे-बहिश्त
अर्ज़ की मैंने इलाही मेरी तक़सीर मुआफ़
ख़ुश न आएँगे इसे हूरो-शराबो-लबे-ख़िश्त
नहीं फिरदौस मुक़ामे-जदलो-क़ाल-ओ-मुक़ाल
बहसो-तकरार इस अल्लाह के बन्दे की सरिश्त0
है बदआमोज़ी-ए-अक़वामो-मलल काम इसका
और जन्नत में न मस्जिद, न कलीसा न कनिश्त
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